Thursday, August 28, 2008

दोस्ती और उम्मीद ...

दुनिया की सबसे मुश्किल आज़माईश हैं 'दोस्ती' | मगर, आज़माने दे काबिल आज़माईश हैं | गर, तुम उठे हुए हो तो तुम्हारी खुशी पर हँसना, मुस्काना किसी और के लिए आसान हैं | गर तुम गिर जाओ तो तुम्हें उठाकर चला दे कोई, यह मुश्किल ही नही असंभव हैं |

"अपने भी नही अपने रहते,
बेगाने बन जाते हैं ...
साया भी हटने लगता हैं,
जब ग़म के ज़माने आते हैं ..."

तक़लीफ़ में किसी की आँखों से आँसू पोंछ सकता हैं हर दोस्त, मगर बनकर आँखो से अश्क बह नही सकता हर दोस्त | हर आदमी अपनी तकलीफें खुद सहता हैं, ज़नाब "यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता, मुझे गिराकर संभल सको तो चलो" | मतलब की इस दुनिया मैं सच्चे दोस्त मिलना मुश्किल हैं | दोस्त के लिए सब कुछ त्याग देना आसान हैं, मगर ऐसा दोस्त ढूँढना जिसके लिए ये किया जा सके बहुत ही मुश्किल हैं | रिश्ते बनाने ज़रूर चाहिए, मगर सौ बार सोचकर, क्योंकि इंसान को सबसे ज़्यादा तक़लीफ़ रिश्तों से ही होती हिया | रिश्ते-नाते, दोस्ती सब कुछ साहित्य, दर्शन, शायरी, ग़ज़ल, कविताओं में अच्छे लगते हैं, असली ज़िंदगी की सच्चाई तन्हाई से शुरू होकर तन्हाई पर ही ख़त्म हो जाती है | फिर भी अगर ईंसान खुश रहना चाहता है तो उसे अपने शब्दकोष मैं से "उम्मीद" शब्द हटा देना चाहिए | जो उम्मीद नही करता, उसे कोई रिश्ता तकलीफ़ नही देता | जुड़े हुए आदमी को एक दोस्त मज़बूत बनाता है, टूटे हुए को जोड़ने वाला दोस्त मिलना ही बहुत मुश्किल होता हैं | इन तमाम उम्मीदों से परे आदमी तभी खुश रह सकता हैं, "जब वह दीपक बनकर जले अपनो के लिए, फूल बनकर खिले अपनों के लिए |" जो दूसरों को खुश रखने के लिए मुस्कुराता रहे, वह अपनी तकलीफ़ से खुद-ब-खुद बाहर हो जाएगा | किसी के सामने कहने से तकलीफ़ कम नही होती, बल्कि बढ़ जाती हैं |

"रहिमन निज़ मन की बिधा, मन ही राखो गोय
सुनी अठिले हैं लोग सब, बाँटि न लेहे कोय "

दूसरो को खुशियाँ देना ही ईंसान को खुश रखता हैं |

" यह ज़िंदगी का रास्ता, रंज़ो-ग़म का मेला है दोस्तों
भीड़ हैं कयामत की, फिर भी हर कोई अकेला हैं दोस्तों
दोस्ती की राहों मैं बाखुदा हमने, हर कदम पर
पाया हादसा ही हादसा दोस्तों,
टूट गये झटके से सारे भरम बुलंदियो के,
खुद को पाया जब अकेला ही अकेला दोस्तो |"

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