Tuesday, January 19, 2010

संवेदना...

यह एल्बम मेरे लिए कुछ ख़ास हैं क्योंकि इसमे समाविष्ट है एक कवि के सोचने की दृष्टि, एक कवि का हृदय और एक कवि की संवेदना. यह गीत इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इसमे उन सभी लोगो का समागम है जिन्हें मैं हमेशा से चाहता रहा हूँ - अटलजी, अमिताभ बच्चन, जगजीत सिंग और शाहरुख ख़ान...

ज़िंदगी की शोर, राजनित की आपाधापी, रिश्तों नातो की गलियों और क्या खोया क्या  पाया के बाज़ारो से आगे, सोच के रास्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड आता है जहाँ पहुँच कर इंसान एकाकी हो जाता है. तब, जाग उठता है एक कवि. फिर शब्दों के रंगों से जीवन की अनोखी तस्वीरें बनती हैं, कविताएँ और गीत, सपनों की तरह आते हैं और काग़ज़ पर हमेशा के लिए अपना घर बना लेते हैं.

अटल जी की ये कविताएँ, ऐसे ही पल, ऐसे ही क्षणो में लिखी गयी हैं, जब सुनने वाले और सुनाने वाले में, तुम और मैं की दीवारें टूट जाती है, दुनिया की सारी धड़कने सिमट कर एक दिल में आ जाती हैं, और कवि के शब्द दुनिया के हर संवेदनशील इंसान के शब्द बन जाते हैं.


क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

जन्म-मरण का अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!


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