Friday, November 4, 2011

माँ...

माँ, तू क्यूँ है चिंतित,
मन तेरा किधर खो रहा...
मत सोच, उस संसार के लिए,
दुख-रोष जहाँ व्याप्त हो रहा...

नित सबेरे कोमल हाथो सें,
तुझको मैं जगाऊँगी...
नन्हें कदमों और किल्कारी से,
घर आँगन महकाऊँगी...

जल्दी दे दो दूध-बिस्कुट,
मैं बड़ी हो जाऊँगी...
खुश कर तेरे इस हृदय को,
सुंदर "परी" कहलाऊँगी..

~ तविषी बजाज