Tuesday, July 30, 2013

मुंशी प्रेमचंद के प्रसिद्ध उद्धरण

स्वार्थ की माया अत्यन्त प्रबल है |
केवल बुद्धि के द्वारा ही मानव का मनुष्यत्व प्रकट होता है |
कार्यकुशल व्यक्ति की सभी जगह जरुरत पड़ती है |
दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।
सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं |
कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता | कर्तव्य-पालन में ही चित्त की शांति है |
नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है |
अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है |
आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है |
यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं |
जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख देने में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं |
लगन को कांटों कि परवाह नहीं होती |
उपहार और विरोध तो सुधारक के पुरस्कार हैं |
जब हम अपनी भूल पर लज्जित होते हैं, तो यथार्थ बात अपने आप ही मुंह से निकल पड़ती है |
अपनी भूल अपने ही हाथ सुधर जाए तो,यह उससे कहीं अच्छा है कि दूसरा उसे सुधारे |
विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला |
आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है |
सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है |
डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है |
चिंता रोग का मूल है।
चिंता एक काली दिवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती।

No comments: